ज़िन्दगी गुलज़ार है
२९ जनवरी ज़ारून
कल मेरे और कशफ के दरमियां पहली झड़प हुई. वह अभी तक अपने पुराने
अंदाज में थी और कल मैंने उसकी तबीयत अच्छी तरह साफ़ की थी और मुझे अपने रवैए पर भी
भरोसा नहीं है, उसकी इसलाह (सही रास्ते पर लाने के लिए) के लिए यह
सुलूक बहुत ज़रूरी है.
कल हमें एक डिनर में जाना था और जब मैं शाम को घर आया, तो
यह देखकर हैरान रह गया कि ब्राउन रंग के लिए मेरी नापसंद जानने के बावजूद अपने लिए
इसी रंग की साड़ी प्रेस कर रही थी. ड्रेसिंग रूम में जाने से पहले मैंने उससे कहा
था –
“कशफ़ इस ड्रेस को वापस रख दो और किसी दूसरे रंग की
ड्रेस पहन लो. तुम ये अच्छी तरह जानती हो कि यह कलर मुझे नापसंद है और यह बात मैं
तुम्हें दोबारा नहीं बताऊंगा.”
जब मैं तैयार होकर ड्रेसिंग रूम से बाहर आया, तो
यह देखकर मेरे तन-बदन में आग लग गई थी कि उसने वही साड़ी प्रेस कर बेड पर रखी हुई
थी यानी उसने मेरी बात को कोई अहमियत नहीं दी थी.
“मैंने तुमसे कहा था कि यह साड़ी वापस रख दो. तुम ये
नहीं पहनोगी.”
ज़ारून जो चीज तुम्हें पसंद है, मैं तुम्हें भी उसके
इस्तेमाल से कभी नहीं रोकती. फिर तुम मुझे क्यों रोक रहे हो. यह कलर तुम्हें पसंद
नहीं है, तो ना सही, मगर मुझे पसंद है
और मैं यही पहनूंगी.”
मैं उसके लहज़े पर खौल कर रह गया था और वो उसी टोन में बात कर रही
थी, जिसमें वो शादी से पहले बात करती थी.
“लेकिन मुझे ये कलर पसंद नहीं है.”
“इससे क्या फर्क पड़ता है?”
उसके जवाब में मुझे आगबबूला कर दिया था.
“मैं तुम्हें बताता हूँ,इससे
क्या फर्क पड़ता है.” मैंने साड़ी उठाई और उसे बाजू से खींचता हुआ वाशरूम में ले
गया. वाशबेसिन में साड़ी फेंकने के बाद मैंने लाइटर से आग लगा दी. वो दम-ब-ख़ुद
(ख़ामोश) जलते हुए शोलों को देख रही थी और मुझे उसके चेहरे की बदलती हुई रंगत देखकर
सुकून मिल रहा था.
“आज एक बात कान खोलकर सुन लो. तुम्हें वही करना है,
जो मैं चाहता हूँ. वही पहनना है, जो मुझे पसंद
है और तुम्हारे मुँह में जो ज़बान है, उसे कंट्रोल में रखो,
वरना मैं उसे काट दूंगा. मैं गाड़ी में तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ.
पूरे १५ मिनट बाद तुम बाहर आओ वरना….”
मैं अपनी बात को अधूरा छोड़ कर बाहर चला गया ठीक १५ मिनट बाद वह
पोर्च में नमूदार (प्रकट हुई) हो गई थी. जब वह कार में आकर बैठी, तो मैंने
बड़े गौर से उसका चेहरा देखा था. वह बे-तासुर (बिना किसी भाव के) था. उसने मुझसे
कोई बात नहीं की और ना ही मैंने उसे मुख्तलिब करने की कोशिश की.
डिनर से वापसी पर सोने से पहले उसने रोज की तरह मुझे दूध का गिलास
ला कर दिया और फिर ख़ामोशी से सोने के लिए लेट गई. आज सुबह भी हर रोज़ की तरह उसने
मुझे बेड-टी दी, फिर ऑफिस के लिए तैयार होने में मेरी मदद करवाती
रही. लेकिन उसने मुझसे कोई बात नहीं की. जब मैंने उसे उसके ऑफिस छोड़ा, तो आज पहली बार उसने मुझे ख़ुदा-हाफिज़ नहीं कहा. मुझे इस बात पर बहुत खुशी
हुई कि उसने मेरी बात को इतना संज़ीदगी से लिया है. मैं यही चाहता था. आज शाम को भी
उसका रवैया नॉर्मल था. बस वो मुझसे बात नहीं कर रही थी. शायद इसका ख़याल था कि मैं
उससे बात कर लूंगा और वह बेहद अहमक है. मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा. आज तक मैं उसको
बर्दाश्त करता रहा, अब उसे यह सब बर्दाश्त करना होगा.
Radhika
09-Mar-2023 04:19 PM
Nice
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Alka jain
09-Mar-2023 04:07 PM
बेहतरीन
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